Wednesday 10 November 2010

...और सुबह हो गई


ऐसा पहली ही बार हुआ, कि पता नहीं रात के किस वक्त नींद उचट गई और बहुत कोशिश करने, मनाने के बाद भी नहीं आई तो नहीं ही आई... बहुत देर तक करवटें बदल-बदल कर उसके आने का इंतजार करते रहे, लेकिन सब बेकार.... फिर अचानक गर्दन के नीचे आई बाँह ने समेट लिया और सिर को जिंदगी के धड़कते सीने पर टिका दिया.... थपकियों का दौर शुरू हुआ तो उस अँधेरे कमरे में दूधिया हँसी बिखर गई और सिरहाने पड़े रिमोट का बटन दबते ही एक बार फिर से मेंहदी हसन की ज़हनियत कमरे में फैल गई। रात के गहरे, अँधेरे सन्नाटे को चीर कर उनकी गाढ़ी, उदास आवाज फैल गई.... मैं खयाल हूँ किसी और का मुझे चाहता कोई और है... समय तो भैरवी का नहीं था, लेकिन गज़ल उसी थाट में थीं। खैर शास्त्रीयता उतनी ही अच्छी है, जितनी हमारे आनंद में बाधा न दे, तो समय-वमय के बंधन को झटक दिया और डूब गए, उस गज़ल के आलोक में। .... मैं किसी के दस्ते-तलब में हूँ तो किसी के हर्फे दुआ में हूँ, मैं नसीब हूँ किसी और का, मुझे माँगता कोई और है.... सुनते ही सारे अहसास झर गए... अँधेरे में रात के पहरों का तो खैर कोई हिसाब रहा ही नहीं, सारी ख़लिश, चुभन, जलन और तपन कहीं गल गई, बह गई, खालिस ‘होना’ भी कहीं नहीं रहा, बस धुआँ-धुआँ सा अहसास रह गया।
एक हसरत जागी कि काश जिंदगी यूँ ही गुजर जाए... एक गज़ल... एक धड़कता दिल और थपकियाँ देती हथेली... धुआँ-धुआँ अहसास और गहरा नशा.... मूँदी आँखें और.... बस.....न आगे कुछ न पीछे.... न कमी और न ख़्वाहिश, कोई उम्मीद, कोई सपना, कोई चाहत नहीं....यही और इतना ही आनंद... गहरे जाकर खुद को छोड़ देने का नशा और उपलब्धि... उतना मुश्किल भी नहीं है, लेकिन आसान भी कहाँ है? इस एहसास को पीते रहे, जीते रहे... लेकिन न तो जिंदगी कहीं ठहरती है और न ही वक्त... हम चाहे देखें ना देखें वह बस चलता रहता है... तो अँधेरे का गाढ़ापन थोड़ा कम हुआ.... खुली खिड़की से सुबह ही सिंदूरी आभा दाखिल होने लगी और आँखों के आगे दुनिया खुल गई.... नशे पर सुनहरी सुबह छा गई.... आँगन में अख़बार के गिरने की कसैली-सी आहट के साथ रात का नशीला जादू टूट गया... सुबह हो गई।

2 comments:

  1. काश जिंदगी यूँ ही गुजर जाए... एक गज़ल... एक धड़कता दिल और थपकियाँ देती हथेली... धुआँ-धुआँ अहसास और गहरा नशा.... मूँदी आँखें और.... बस.....न आगे कुछ न पीछे.... न कमी और न ख़्वाहिश, कोई उम्मीद, कोई सपना, कोई चाहत नहीं....यही और इतना ही आनंद... गहरे जाकर खुद को छोड़ देने का नशा और उपलब्धि... उतना मुश्किल भी नहीं है, लेकिन आसान भी कहाँ .....fentastic

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  2. aapke vichar achchhe lage. excellent...

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