Saturday 10 January 2009

पाक-नापाक, हम ढुलमुल

मुंबई हादसे को महीने भर से ज्यादा हो गया है..... हम पहले ही दिन से पाकिस्तान के खिलाफ सुबूत दे रहे है.... और वो लगातार हमें झुठला रहा है.... वो कह रहा है कि हम युद्ध के लिए तैयार है..... हम कह रहें है कि हम युद्ध नहीं चाहते है।
समझ में नहीं आ रहा है कि गुनाह किसने किया है....? हमारे लिए इंसानी जानों की कीमत क्या है...? कभी-कभी तो शुबहा होने लगता है कि हमारे सियासतदानों के लिए अवाम का मतलब कहीं मात्र वोट ही तो नहीं ....? हमारे लिए ये कोई पहला मौका नहीं है कि हम आतंकवाद के शिकार हुए है ...... संसद पर हुए हमले के बाद हम कुछ नहीं कर पाए..... हमारी समस्या ये है कि हम कोई भी कार्यवाही करने के लिए दूसरों की और देखते रहते है....? इस मामले में भी हम चाहते है कि हमे अमेरिका इशारा करे ...... और हम कार्यवाही करें ....हमें यह नहीं भूलना चाहिए कि अमेरिका ने हमारे मुश्किल के दौर में हमे न सिर्फ़ अकला छोड़ दिया था बल्कि हमारे लिए मुश्किलें बढाई थी.... और हम इतनी बड़ी घटना के बाद भी सिवाए बयानबाजी के और कुछ भी नहीं कर रहें है.....दुसरे विश्व्ययुद्ध के बाद से पुरी दुनिया में यदि अमेरिकी भूमिका को देखें तो स्पष्ट हो जायगा कि उस देश की नीयत क्या है.... पुरी दुनिया में जहाँ कहीं अमेरिकी हस्तक्षेप हुआ है वहां अमेरिकी स्वार्थ रहें है....(यहाँ स्वार्थ और हितों में अन्तर है, अन्तरराष्ट्रीय राजनीति पुरी तरह हितों का ही खेल है, लेकिन अमेरिकी राजनीति पुरी तरह स्वार्थों से ही संचालित होती है) अब हमें इस मुगालते से भी बाहर आ जाना चाहिए की उसने भारत से परमाणु समझोता इसलिए किया कि हमे इसकी जरुरत है.... नहीं ये डील इसलिए हुई है कि उसे इस डील की जरूरत है ....मंदी की चपेट में आई अपनी अर्थव्यवस्था को बूस्ट करने के लिए किसी ऐसे बकरे की जरुरत थी... जिसकी जनसंख्या विशाल हो..... और ये हमसे बेहतर ओर कौन हो सकता है..... आखिर आतंकवाद ने उत्तर और दक्षिण के देशों के झगडों को हाशिये पर धकेल दिया है लेकिन ये मुद्दा खत्म नहीं हुआ है कि उत्तर के देश गरीब देशों को अपनी पुरानी हो चुकी तकनीक ऊँचे दामों पर बेचते है.....इस तरह से गरीब देश इन अमीर देशों के लिए ऐसे कचराघर है.... जहाँ वे अपना कचरा भी फेंकतें है और उसकी कीमत भी लेते है..... अमेरिका के लिए हम सिर्फ़ एक बड़ा बाजार है..... जहाँ वो सब कुछ बेच सकता है....अमेरिका और पाकिस्तान हमेश से रणनीतिक साझीदार रहें है और रहेंगे अमेरिका कभी भी नहीं चाहेगा कि भारत और पाकिस्तान के रिश्तें सुधरे..... यदि ऐसा होता है तो सबसे ज्यादा नुकसान उसे ही होगा.... उसका हथियारों का बाजार प्रभावित होगा और दक्षिण एशिया में उसकी जड़ें कमजोर होगी.... फिर जरा सोचिये आतंकवाद से सबसे ज्यादा फायदा किसे हुआ है....? किसने इस विषबेल को पोसा है? अमेरिका ने ही ना तो फिर वो क्यों चाहेगा की दक्षिण और पश्चिम एशिया में शान्ति हो तभी तो यहाँ पाकिस्तान को और पश्चिम में इसरैएल की पीठ पर लगातार अमेरिका का हाथ है.....फिर लौटते है मुंबई मामले पर... अब अमेरिका ने पलटी मरी और इस बात पर जोर देने लगा है की भारत को पाकिस्तान के साथ मिलकर जाँच करनी चाहिए..... अब कहिये कि शिकार और शिकारी मिलकर फैसला करेंगे तो .... गौर फरमाए कि ---- मेरा कातिल ही मेरा मुंसिफ है, क्या मेरे हक में फैसला देगा.....तो अब भलाई इसी में है कि हम कन्धों की तलाश छोडें और अपने साथ हुए अन्याय का ख़ुद ही प्रतिरोध करें..... किसका इंतजार है अब???

2 comments:

  1. माफ कीजियेगा पर पूरी प्रोफाईल ही भ्रमित है। आप अपने आप को बुद्धिजीवी दिखलाने के चक्कर में हास्यास्पद हो कर रह गयीं हैं।
    यदि इतनी ही सादगी पसंद हैं तो आत्म प्रशंसा का इतना बड़ा ढोल क्यों ?

    ReplyDelete
  2. AAP BHI KAH LO KYA HO JAYEGA.
    AARE DESH JAGAO DESH.
    DESH JAGEGA TO NETA BHAGEGA
    AUR NETA BHAGEGA TO DESH BADHEGA.
    DESH BADHEGA TO AATANK BHAGEGA.
    BAK LIKHO, LIKHNE MEIN KISI KA KYA JATA H.
    RAMESH SACHDEVA
    hpsdabwali07@gmail.com

    ReplyDelete