Monday 1 December 2008

मौका भी है और दस्तूर भी

मुंबई के बाद जो कुछ हो रहा है वह अभूतपूर्व है. स्वतंत्र भारत के इतिहास में पहली बार जिस तरह जनता का गुस्सा फूटा है, उससे लगने लगा जैसे मुर्दा हो चुके भारतीय समाज में जान आ गई हो. अब तक पेम्पर होते आए राजनेताओं के लिए ये जनता का ये रूप बिल्कुल नया है इसलिए सभी बोखालायें हुए है और बकवास करने लगे हैं ऐसे मौकों पर जिस सभ्यता की जरुरत थी वह नेताओं ने नहीं दिखाई. ये दौर भी गुजर जाएगा, जैसे अब तक हुए हमलों को भुला दिया गया ये भी भुला दिया जाएगा समाज फिर मुर्दा हो जाएगा, क्योंकि व्यवस्था तो मुर्दा ही है न फिर भी अब सब साँस रोके सरकार से कुछ करने की आस लगाये हुए है। यूँ ये हमारे इतिहास से मेल नहीं खाता है, क्योंकि अब तक का हमारा इतिहास सिर्फ़ बचाव का रहा है आक्रमण का नहीं.... संसद पर आतंकी हमला इसका उदाहरण है तब भी हमारी सरकार ने कहा था कि समय आ गया है....लेकिन वो समय कभी नहीं आया शायद अब भी नहीं .
ये थोड़ा तल्ख़ है, लेकिन सच है कि हमारे इतिहास ने हमे गर्व करने का एक भी मौका नहीं दिया है हम हमेशा ही पिटते आए है और अब हम इससे ऊब चुके है.....हमारे जवानों ने आतंकियों का जम कर मुकाबला किया हमे उनकी बहादुरी पर गर्व है और हम उन पर भरोसा करते है. फिर भी मुंबई में जो कुछ हुआ उसमे देश को गर्व करने लायक कुछ भी नहीं हुआ. हमने आतंकवाद के खिलाफ कोई जंग नहीं जीती है हम इस ज़ंग में बुरी तरह नाकाम रहे है और हम न सिर्फ़ ख़ुद से शर्मिंदा है बल्कि हमने दुनिया में अपना गौरव भी खोया है. लगभग २०० लोगों की जान.....४०० से ज्यादा घायलों.....बेहिसाब माली नुकसान के साथ २० बहादुरों को खोया है.....हमने पाया क्या है? उल्टे एक शक्ति संपन्न देश के रूप में हमारी प्रतिष्ठा खाक में मिल गई है. लगभग सवा अरब की जनसंख्या वाले इस विशाल देश को मात्र १० आतंकवादियों ने पुरे तिन दिनों तक बंधक बनाये रखा.....सेना, प्रशासन और सरकारों को उलझाएँ रखा.....हम आतंकवादियों के मारे जाने को हमारी सफलता माने तो ये हमारी बेवकूफी से कम और कुछ भी नहीं हैं, क्योंकि वे तो मरने ही आए थे. जीत तो तब होती जब हम इतना होने के बाद भी हम कम से कम ६ आतंकवादियों को जिन्दा पकड़ने में कामयाब होते.....जितने आतंकवादियों को हमने मारा उससे २० गुना ज्यादा लोगों की जानें हमने गवाई हैं. तो फिर हासिल क्या हुआ हैं, सरकार और प्रशासन से लोगों का भरोसा उठ गया हैं और दुनिया में आपकी छवि ख़राब हुई हैं....राष्ट्र के नाम अपने संबोधन में प्रधानमंत्री ने कहा कि ये सब्र का इम्तिहान हैं...अब यह सब्र कहाँ ख़त्म होगा इसका जवाब नहीं मिल रहा हैं. उधर अमेरिका के भावी राष्ट्रपति तक ने कहा दिया कि अपनी रक्षा करना एक संप्रभु राष्ट्र का अधिकार हैं...... पता नहीं सरकार को किस चीज का इंतजार हैं? ये मौका हैं अपनी खोई साख लौटाने का, भारत को तुंरत पाकिस्तान के आतंकवादी केम्पों पर हमला कर देना चाहिए.....अमेरिका भी अभी तो भारत का विरोध नहीं करेगा....फिर मुंबई मामले में हम मंदी को भूल गए.....यदि युद्ध होता हैं तो यह मंदी को दूर करने में भी मदद करेगा..... कार्यवाही करने का यहाँ मौका भी हैं दस्तूर भी...... कुछ कहना हैं?

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